Monday, January 10, 2022

अभियुक्त को राज्य के व्यय पर विधिक सहायता




भारत के संविधान ने सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए हैं सम्मान और न्याय पूर्ण जीवन जीने का अधिकार हमारे संविधान ने दिया है किंतु कई बार जानकारी के अभाव में लोगों को अपने हक व न्याय से वंचित रहना पड़ता है लोगों तक कानून की पहुंच बड़े और उन्हें नैतिक न्याय मिले इसके लिए सरकार लीगल एड यानी मुफ्त कानूनी सहायता देती है। दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 304 में यह प्रावधान किया गया है कि जहां सेशन न्यायालय के समक्ष किसी विचारण में अभियुक्त का प्रतिनिधित्व किसी प्लीडर द्वारा नहीं किया जाता है और जहां न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि अभियुक्त के पास किसी प्लीडर को नियुक्त करने के लिए पर्याप्त साधन नहीं है वहां न्यायालय उसकी प्रतिरक्षा के लिए राज्य के व्यय पर  प्लीडर उपलब्ध कराता है

Sunday, January 9, 2022

Section 323 I.P.c



 भारतीय दंड संहिता की धारा 323 के अनुसार, जो भी व्यक्ति  जानबूझ कर किसी को स्वेच्छा से चोट पहुँचाता है, उसे किसी एक अवधि के लिए कारावास जिसे एक वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है, या एक हजार रुपए तक का जुर्माना या दोनों के साथ दंडित किया जा सकता है।


Saturday, January 8, 2022

धारा 111सीआरपीसी क्या है










जब भी कोई व्यक्ति समाज में किसी भी प्रकार से पर शांति को भंग करने का प्रयास करता है या किसी पुलिस अधिकारी को यह अंदेशा होता है कि अमुक व्यक्ति द्वारा सामाजिक शांति को भंग किया जा सकता है तो उक्त पुलिस अधिकारी अमुक व्यक्ति को धारा 107/116 सीआरपीसी के तहत चलानी रिपोर्ट संबंधित परगना मजिस्ट्रेट के न्यायालय में प्रेषित कर देता है और उस रिपोर्ट से परगना मजिस्ट्रेट पूर्ण रूप से संतुष्ट होकर धारा 111 सीआरपीसी का नोटिस जारी करता है और शांति भंग करने में सनलिप्त व्यक्तियों से यह अपेक्षा करता है कि क्यों ना एक निश्चित अवधि के लिए  शांति बनाए रखने हेतु निजी बंधपत्र और जमानत से पाबंद कर दिया जाए।

वसीयत के लीगल प्वाइंट


अब तक वसीयत के निष्पादन के संबंध में अनेक वादों में अनेक न्यायालय द्वारा महत्वपूर्ण सिद्धांत प्रतिपादित किए गए हैं जैसे कि

 
  1. वसीयत कर्ता को वसीयत का निष्पादन करते समय स्वस्थ मस्तिष्क की दशा में समस्त प्रभाव से मुक्त होना चाहिए। 
  2. वसीयत कर्ता को वसीयत का निष्पादन करते समय स्वस्थ चित्र होना चाहिए।
  3. वसीयत को विद के उप बंधुओं के अनुसार निष्पादित होना चाहिए।
  4. वसीयत को साबित करने का दायित्व उस व्यक्ति पर होता है जो वसीयत के आधार पर अधिकार का दावा करता है।
  5. वसीयत वसीयत कर्ता की अंतिम वसीयत होनी चाहिए।
  6. वसीयत के अंतिम होने की बात को साबित करने का भार वसीयत का लाभ लेने वाले व्यक्ति पर होता है।
  7. अन्य दस्तावेज व तत्कालिक साक्षी साबित करने के संबंध में बनाएंगे उपबंध वसीयत के मामले में भी प्रभावी होते हैं।

वसीयत क्या होती है



 वसीयत को हिंदी में इच्छा पत्र और अंग्रेजी में विल (वसीयत) कह।जाता है। निश्चित रूप से यह कहना संभव नहीं है कि वसीयत सबसे पहले कहां पर अस्तित्व में आई वैसे यह माना जाता है कि वसीयत का श्रीगणेश बेबीलोन और असीरिया में हुआ धीरे धीरे जैसे-जैसे सभ्यता का विकास हुआ सभ्य देशों में कानून द्वारा यह व्यवस्था की गई कि किसी संपत्ति का मालिक स्वयं यह निश्चित कर सकता है कि उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का मालिक कौन बने वास्तव में वसीयत ऐसे व्यक्ति के पक्ष में लिखी जाती है जो सामान्यता वसीयत लिखने वाले के निकटतम रिश्ते में होता है और वसीयत कर्ता की सेवा आदि करके उसे हर प्रकार से संतुष्ट रखता है और वसीयत कर्ता का यह भी विश्वास रहता है कि ऐसा व्यक्ति भविष्य में भी उसकी सेवा करेगा और उसकी मृत्यु के बाद उसका दाह संस्कार आदि नियमिता संपन्न करेगा हिंदू विधि के शुरुआती चरण में इच्छा पत्र का उल्लेख नहीं पाया जाता है लेकिन धीरे-धीरे विधि के विकास के साथ ही साथ वसीयत का भी प्रचलन शुरू हुआ और बाद में वसीयत को विधिक मान्यता प्रदान कर दी गई वसीयत एक प्रकार की विधिक घोषणा है जिसके द्वारा वसीयत कर्ता अपनी मृत्यु के पश्चात अपनी संपत्ति के निस्तारण के संबंध में अपने जीवन काल में ही व्यवस्था कर देता है वसीयत कर्ता द्वारा की गई इस प्रकार की घोषणा वसीयत कर्ता के मृत्यु के बाद प्रभावी होती है इस प्रकार से स्पष्ट है कि वसीयत वसीयत कर्ता की संपत्ति के संबंध में ऐसी घोषणा है जो वसीयत कर्ता की मृत्यु के बाद प्रभावी होती है